बदहाल हो चुकी हैं उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्थायें,आयुष्मान योजना बनी लूट का अड्डा।
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अरविन्द थपलियाल
उत्तरकाशी : उत्तराखंड में चाहे सरकार परिवर्तन हो चाहे चेहरे बदलें जांये लेकिन कुर्सी का काम करने का ढंग वही है, हम आज बात कर रहे हैं राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की जो अब एक सिरे से चौपट हो चुकी है, मुख्यमंत्री हो चाहे स्वास्थ्य मंत्री आप जनता के आंखो में धूल झोंकने को चाहे स्वास्थ्य सुविधाओं का औचक निरिक्षण कर लो लेकिन यहां व्यवस्थाओं का वही है ढाक के तीन पात, जी हां जब राजधानी देहरादून में स्वास्थ्य सुविधाओं और व्यवस्थाओं के यह हाल हैं तो आप सीमान्त और पर्वतीय क्षेत्रों की छोडि़ये, उत्तराखंड सरकार अटल आयुष्मान को लेकर लोगों के बेहतर इलाज का दावा जरूर करती है और निश्चित तौर पर यह सरकार की जीवन दायनी योजना भी है लेकिन इसके पिच्छे जो अस्पताल चला रहे यह एक लूटमार ही है जी हां।
आयुष्मान योजना की या तो गाईड लाईन ही सही नहीं है और या जानबूझकर अस्पताल लोगों को छलनी किया जा रहा है,मै स्वयं इस बात का प्रमाण हूं मैं अपने परिवार को प्रसव के लिये उत्तराखंड के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरेश ले गया 16जुन को और 17जुन को आपरेशन से प्रसव भी हो गया अब 18जुन को नवजात को अचानक इन्पेक्सन बताकर 12दिन आईसीययू में रख दिया तो सही है कि आप गहन इलाज दे रहे हैं अस्पताल की सरहाना होनी चाहिए हांलाकि हमें 25दिन अस्पताल रहना पडा़ और आयुष्मान की छ:फाईलें बनानी पडी़ वह सबकुछ ठीक है, लेकिन एक सवाल जहन में तब से उठ रहा है कि अस्पताल में पैदा होने वाले 95प्रतिशत नवजात अश्वस्थ क्यों होतें है या यह सभी आईसीयू में कैसे जातें हैं और ज्यादातर आक्सीजन और दौंरे जैसी ही समस्या सबको क्यों?
आयुष्मान योजना को लेकर सवाल तब उठता है जब अस्पताल पहले ही पैकेज बना देतें हैं तो अस्पताल को कैसे पता है कि पैकेज की अवधी यह निश्चित है, अब इलाज में इतनी शिथिलता चलाई जाती है कि इलाज लगभग 15दिन से कम ना चले जो बडी़ खामी नजर आती है हांलाकि मेडिकल नियम क्या है वह तो वह जाने।
आयुष्मान को लेकर पूरी जवाबदेही तिमारदार की ही क्यों जब अस्पताल में भर्ती हो जातें है तो फैल आगे पिच्छे दौडा़ने की जवाबदेही अस्पताल क्यों नहीं लेता अप्रुवल लेने के लिये मरीज स्वयं लैन में खडा़ क्यों हो?

यह खामी एक मंहत इंदिरेश अस्पताल में नहीं है गैर और सरकारी अस्पतालों में है। स्वास्थ्य कर्मी मरीजों और तीमारदारों के साथ सही व्यवहार नहीं करने का सिलसिला हो या फिजुल की कागजी कार्यवाही यह सभी तमाम खामीयां आडे़ रही हैं जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य के लिए सही संकेत नहीं। हमारा सवाल सिर्फ यह है कि सरकार पहले स्वास्थ्य निति को दुरुस्त करे जिससे लोगों को राहत पंहुचे।
